Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 463
________________ H Shik a in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri K suri Gyanmandie श्रीदे. वन्दनीय चतुष्कं चैत्यश्री- धर्म संघाचारविधौ ॥३६६॥ | गिण्हेइ बंभदत्तो दिक्खं सुविमुद्धपरिणामो ॥ १२९ ॥ भावणपहाणविहिपुव्वधम्मअहिगारसारतवनिरओ। केवलकलाइ कलिओ सिवं गओ बंभदत्तमुणी ॥१३०।। इत्येवमाकर्ण्य सकर्णलोकाश्चित्रं चरित्रं जिनदत्तसूनोः। सदाधिकारस्मरणादिशुद्धे. यत्नं कुरुध्वं जिनवंदनेऽस्मिन् ॥ १३१ ॥ इति ब्रह्मदत्तकथा, इत्युक्तं 'चार अहिगार'त्ति द्वादशं द्वारं, संप्रति 'चउवंदणिज'त्ति त्रयोदशं द्वारं समधिकपूर्वार्द्धपदेनाह चउ वंदणिज्ज जिणमुणिसुयसिद्धा इह चत्वारो वंदनीयाः सुमतिकन्यकयेव मंगलोत्तमशरणविधायित्वेन स्तुतिप्रणामाद्यर्हाः, के ते इत्याह-जिनाश्चतुर्विधा वक्ष्यमाणस्वरूपाः१. मुनयश्च-साधवो गच्छगतादिभेदभिन्नाः, आचार्योपाध्याययोस्तु साधुत्वाव्यभिचारात् साधुग्रहणात् ग्रहः, उक्तं च-"साहुत्तसुट्टिया जं आयरियाई तओ य ते साह । साहुगहणेण गहिय"त्ति २, श्रुतं च-अंगानंगप्रविष्टं ३ सिद्धाश्च-क्षीणाशेषकर्माणः४, इहेति संपूर्णचैत्यवंदनायां जिनशासने वा, यद्वा त्रैलोक्येऽपीति,सुमतिकन्याकथा चैवं-अत्थिह पुन्वविदेहे सीयानइदाहिणेण वरविजए । रमणिज्जे वरनयरी सुभगा सुभगामिमणलोया ॥१॥ सरभसनमंतसोलसनिवसहसकिरीडचिट्ठपयवीढा । पालंति तमपराइयअनंतवीरियत्ति बलविण्हू ॥२॥पावकरणाउ विस्या निरया निचंपि धम्मकरणम्मि । विरयत्ति अग्गमहिसी आसी अवराइयबलस्स ॥३॥ तीसे धूया सुमई बालत्ताओवि धम्मकरणमई । दुच्चरतवचरणरई चिरण्णलावन्नविजियसई ॥४॥ अहिगयजियाइतत्ता जिणमुणिसुयसिद्धवंदणपसत्ता । जिणधम्मरागरत्ता निरुवमरूवेण संजुत्ता ।। ५॥ पालियवरजीवदया सिसुभावेविहु गहियगिहिसुवया। आवस्सयाइनिरया भावइ सुहभावणाओसया॥६।। उववासपारणे गंतु चेइए सा कयावि जिणनाहं । INA MMITTINAMultimemumthiRELP DIATRININDIAHINITIN MIPARIRAMP all mat uatinARITAL HILaunee ॥३६६॥ For Private And Personal

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