Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 401
________________ Shri M e in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaita l on Gyanmandie Pात मरीचिदृष्टान्तः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३०४॥ ANPURISPERIMARTUPPR वीसं तित्थयराणं ताव एगकाले भवंति, अइया अणागया अर्णता, ते तित्थगरे नमसामि"त्ति, किंच-सर्वत्र नामस्थापनाद्रव्याहंतो भावार्हदवस्थां हृदि व्यवस्थाप्य नमस्कार्याः, एतद्ज्ञापनार्थमेव च पूर्वाधिकारोक्ता अतीता अरिहंता जे य अइया सिद्धा इति पुनर्भणनं, भणितं च चैत्यवंदनाचूर्णी-"पुवाहिगारामिहियअतीतारिहंताणं पुणो जे य अइया सिद्धत्तिपएण भणणं भविस्सवट्टमाणजिणा हि पत्तभावारिहंतभावा एव वंदेयत्वा, न नरगाइभववत्तिणोत्ति जाणावणत्थं"ति, भरताधिपेनापि च इत्थमेव नमस्कृतत्वात् , तदृष्टांतश्वायम्___अत्थि अउज्झानयरी नव्वकुलालंकिया नवपुरिव्य । जाए करवालुप्पाडणं तु समणाण न जणाणं ॥१॥ अविय-सत्तमुणिमित्तगम्वियमणेगमणिसंकुला सुरपुरिपि । एगवुहं भूरिहा हसइव जा तूररसिएहिं ॥२॥ साहियअखंडछक्खंडभारहो तत्थ भरहचक्कवई । आखंडलुव्व अक्खंडसासणो पालए रजं ॥ ३ ॥ तथा 'छन्नवइगामकोडीण बाणवइदोणमुहसहस्साणं । बिसयरिपुरसहसाणऽढचत्तपट्टणसहस्साणं ॥ ४ ॥ तहय चउवीसकब्बडसहसाणं सोलखेडसहसाणं । वीसाऽऽगरसहसाणं चउदससंवाहसहसाणं ॥५॥ छप्पन्न कुरजाणं गुणवन्नासंतरोदयाणं च। सामित्तं कुणइ तहा चउवीसमडंबसहसाणं ॥ ६ ॥ सवणसुहकारिदसदिसिविसारिजयसहपंचमो कइया । उच्छलिओ गयणयले चउबिहाऽऽउज्जगहिरसरो ॥७॥ तं सोउ संभमुम्भंतलोयणेणं निवेण पडिहारो। किमिणति पुच्छिओ भणइ इय सिरे अंजलिं काउं ।।८॥ देवाणुपिया सइ जस्स दंसणं अहिलसंति कखंति ।जन्नामस्सवणेणवि हयहियया हुंति स जयगुरू ॥९॥ आगासगेण छत्ततयेण चमरेहिं धम्मचक्केण । सह पायपीढसीहासणेण धम्मज्झएण तहा ॥१०॥ कमकमलअहिट्ठियकणयनलिणनवगेण नमिरसिखरेहिं । पवणेणऽणुकूलेणं पयाहिणावत्तसउणेहिं ॥११॥ हिट्ठमुहकंटएहि य गयण- RILPAILIPPATIALA AURamPURE ॥३०४॥ For Private And Personal

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