________________ ( 14 ) .. को साधारण खाते में ले जा सकते हैं परन्तु कार्य के प्रारंभ में ही साधारण खाते में ले जाने का निर्णय श्रीसंघ को कर देना चाहिए / 'देवद्रव्य' के निर्णय से जो एकत्रित द्रव्य होता हैं, उस द्रव्य को साधारण खाते में नहीं ले जा सकते हैं। जो द्रव्य साधारण खाते में इकट्ठा होता है उसका व्यय भ समयानुसार ही होना चाहिए। परन्तु आजकल कितने ही, ट्रस्टी लोग अपनी इच्छानुसार व्यय करते हैं ऐसा भी नहीं होना चाहिए। कई साधुओं, पंन्यासो एवं आचार्यों आदि का ऐसा अभिप्राय है कि पूजा. आदि के लिए बोली जाने वाली बोलियों का जो भाव ( किंमत ) हो उसमें वृद्धि करके प्राप्त द्रव्य को साधारण खाते में ले जाना चाहिए / परन्तु वास्तव में तो इसका परिणाम नहींवत् ही है क्योंकि भाव बढ़ाने से जिसका सौ मण घी बोला जाता था उसका 50 मण ही बोला जायेगा। अभी भी जिस गाँव या शहर में 16 से लगाकर 20 रूपयों का भाव रखा गया है वहाँ किसी भी कार्य के लिए 5-25 मण घी की बोली भी मुश्किल से बोली जाती है / जहाँ 5 रुपये मण का भाव होता है वहाँ सैकड़ो मण की बोली बोली जाती है और जहाँ ढाई या सवा रुपये मण का भाव है वहाँ हजारों मण की बोली लगती है / अतः कहना पड़ेगा कि जहाँ भाव ज्यादा वहाँ