________________ ( 85) मेरी तो यह सिर्फ सूचना थी, जिस समय मैंने समाज को यह सूचना दी थी, दूसरे शब्दों में जिस समय इससे सम्बन्धित प्रथम लेख मैंने वर्तमान पत्रों में दिया, उस समय मुझे स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं थी कि मेरे इन विचारों की तरफ समाज का इतना अधिक ध्यान आकषित होगा तथा देवद्रव्य सम्बन्धी अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए अनेक पत्रिकायें मुझे निकालनी पड़ेगी। मनुष्य विचार कुछ करता है और होता कुछ और ही है / परिणामतः मेरे लेखों की तरफ अनेक महात्माओं का ध्यान आकर्षित हुआ। किसी भी कारण से एक महात्मा श्री ने बिना प्रमाण के ही मुझे अपने विचारों को वापस लेने की सूचना की, किन्तु मैं अपने विचारों पर दृढ़ रहा और निश्चय किया कि जब तक शास्त्रीय प्रमाणों से मेरे विचारों को असत्य प्रमाणित नहीं कर दिया जाता, तब तक मैं अपने विचारों में परिवर्तन करने का कोई कारण नहीं देखता। इस प्रकार दृढ़ता पूर्वक मुझे अपने विचारों को प्रकाशित करना पड़ा। दूसरी ओर मेरी पत्रिका की सहस्र-प्रतियों जैन समाज में वितरित की गई और मुझे जब ऐसा ज्ञात हुआ कि अब भी समाज, इस विषय के बारे में अधिकाधिक जिज्ञासावृत्ति रखता है तब मैंने "देवद्रव्य संबंधी अपने विचारों" की अन्य दो पत्रिकाएँ, शास्त्रीय प्रबल प्रमाणों