Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 119
________________ ( 114 ) सकेंगे क्या? ज्ञानदर्शन गुणों का सस्पर्धा चढ़ावा करने वाला अथवा उन गुणों की बोली बोलने वाला ? पुनः श्राद्धविधि के पृष्ठ 70 पर “तदाय - व्ययादौ सुव्यक्तं लेख्यकम् / स्वयं परैश्च द्रव्यार्पण-देवदायप्रवर्तनादिविधिना तदुत्सर्पणम् xxx" इस प्रकार का पाठ है, इसका अर्थ है-देवद्रव्य के आय-व्यय का हिसाब सुस्पष्ट रखना चाहिए और स्वयं द्रव्य देकर तथा दूसरों के पास से दिलवाकर एवं देवभाग को रखकर और रखवाकर देवद्रव्य की वृद्धि करनी चाहिए।" देखिएँ-इस पाठ में आये हुए 'उत्सर्पण' शब्द का 'बोली बोलना' अर्थ हो सकता है क्या ? 'महानिशीथ' सूत्र के तृतीय अध्ययन में लिखा है कि "अरिहंताणं भगवंताणं गंधमल्लपईवमज्जणोवलेवणविचित्तबलिवत्थधूवाइएहिं पूआक्सकारेहिं पइदिणमब्भच्चणं पक्कुव्वाणा तित्थुच्छप्पणं करमो" अर्थात- "अरिहंत भगवन्तों की गंध; माला, दीपक, संमार्जन, लेपन, वस्त्र, धूपादिक, पूजासत्कार द्वारा प्रति

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