________________ . ( 115 ) दिन अर्चना करते 'हए, हमें तीर्थ की उन्नति करनी चाहिये / " देखिए- इसमें भी 'उत्सर्पण' शब्द का 'उन्नति' अर्थ में ही प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ बोली बोलना नहीं है। __'उत्तराध्ययन' सूत्र के पञ्चमाध्याय की गाथा 31 की टीका में लिखा हुआ है___"यदा योगा नोत्सर्पन्ति"। अर्थात्-मन-वचन-काया के व्यापार जब प्रफुल्लित न हो, विकस्वर न हो अर्थात् मन-वचन और शरीर बराबर चलते न हों।" देखिए-यहाँ भी उत्सृप धातु का अर्थ बोली बोलना नहीं होता है, यह सुस्पष्ट है। _ 'उत्सर्पण' शब्द के ऐसे अनेक उल्लेख मिलते हैं किन्तु विस्तार भय से उन सबको नहीं दिया गया हैं / श्राद्धविधि के पृष्ठ 60 पर आरती' का प्रकरण चला है और उस में विस्तृत वर्णन किया गया है, परन्तु वहाँ बोली बोलने का नाम भी नहीं है। यह क्या बता रहा है ? यही कि बोली बोलने की प्रथा शास्त्रीय नहीं