Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 124
________________ ( 116 ) देखकर प्रतिवादी महाशय को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए / 'द्रव्य के उत्सर्पणपूर्वक' अर्थात् 'द्रव्य की वृद्धि पूर्वक आरती उतारना।' यह अर्थ बोली बोलने के अर्थ को किञ्चित् भी स्पर्श नहीं करता है। ध्यान रहना चाहिये कि 'द्रव्य की स्पर्धापूर्वक बोली बोलना' और 'द्रव्य की वृद्धि' इन दोनों में महान् अन्तर है। आरती उतारने वाले आरती में पैसे, रुपये, गिन्नी आदि रखकर आरती उतारते हैं / यह बात किसी से अज्ञात नहीं है। यह प्रथा वर्तमान में भी सुप्रचलित है / यह 'द्रव्य की वृद्धि' है या दूसरा कुछ ? इस प्रकार 'द्रव्य की वृद्धि पूर्वक आरती उतारना' सरल अर्थ होने पर भी बीच में 'बोली बोलना' अर्थ घुसेड़ देना कितनी धृष्टता कहीं जायेगी? भगवान् हेमचन्द्र अभिधान चिन्तामणि में "उत्सों भावानामेव रोहत्प्रकर्षता, सोऽस्यामस्तीति उत्सर्पिणी कहा है वह उचित ही है / इससे प्रस्तुत प्रकरण में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है। विशिष्ट उदार भाव से द्रव्य रखकर आरती उतारना, यही भावार्थ 'द्रव्योत्सर्पण पूर्वक आरात्रिकविधान' वाक्य का है। 'द्रव्य का उत्सर्पणपूर्वक' अर्थात् 'द्रव्य का रोहत्प्रकर्षपूर्वक ऐसा अर्थ सहर्ष कर सकते हैं इसमें किसी प्रकार

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