Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ ( 120 ) की बाधा नहीं है, परन्तु 'द्रव्य का सस्पर्धा चढ़ावा' ऐसा अर्थ तो हो ही नहीं सकता है। 'द्रव्य का अधिक प्रकर्ष' अर्थात् यथाशक्ति आरती में विशेष द्रव्य रखकर आरती उतारना चाहिये / यही अर्थ उपयुक्त है। इस प्रकार सरल और हृदयंगम अर्थ को छोड़कर अन्य अयुक्त अर्थ करना एक विद्वान् के लिए शोभास्पद नहीं है। काल के अर्थ में आने वाले 'उत्सर्पिणी' शब्द का अर्थ, सागरजी महाराज क्या ऐसा, करते हैं कि-रूप, रस आदि गुणों की बोली बोलने वाला अथवा चढ़ावा करने वाला। 'उत्सर्पिणी' काल को वे यदि रूपरसादि गुणों की बोली बोलने वाला नहीं करते हैं, तो फिर प्रस्तुत प्रकरण में द्रव्योत्सर्पणपूर्वक आरती उतारने के संबंध में "द्रव्य का उत्सर्पणपूर्वक' का अर्थ 'बोली बोलना' क्यों करते हैं? और अर्धजरतीय न्याय के दोष की ओर दृष्टिपात क्यों नहीं करते हैं ? कालवाचक 'उत्सर्पिणी' शब्द में जो धात्वर्थ रहा हुआ है वह 'उत्सर्पण' में भी बराबर है। देखिएँ कुछ सोचिए- 'उत्सर्पिणी' शब्द का अर्थ 'बढ़ाने वाला' या विशेष बढ़ाने वाला' इतना ही है, परन्तु इतने से काल का अर्थ स्पष्ट नहीं होने के कारण रूपरसादि का अँध्याहार किया जाता है, तात्पर्य रूप

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130