Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 126
________________ ( 121 ) रसादि गुणों को बढ़ाने वाला 'उत्सर्पिणी' काल कहा जाता है। अब इस प्रकार का शब्दार्थ 'उत्सर्पण' शब्द में बराबर ठीक लागू होता है या नहीं, इसका विचार कोजिए। द्रव्य के उत्सर्पणपूर्वक आरती उतारना अर्थात् द्रव्य की वृद्धिपूर्वक आरती उतारना। इसका मतलब, 'बोली बोलने के द्वारा आरती उतारना' यह तो अर्थ कर ही कैसे सकते हैं ? परन्तु आरती में पैसें, रुपयें, गीन्नी आदि डालकर इस प्रकार द्रव्य की वृद्धिपूर्वक * आरती उतारना चाहिए, ऐसा अर्थ हो सकता है और यही सीधा और सरल अर्थ है / 'उत्सर्पण, शब्द का अर्थ यदि 'बोली बोलना' करेंगे तो कालवाचक 'उत्सपिणी' शब्द में भी वैसा हो अर्थ करना पड़ेगा, अर्थात् उत्सर्पिणी काल कैसा है ? तो कहना पड़ेगा कि रूपरसादि गुणों की बोली बोलने वाला है बोली का चढ़ावा करने वाला है। सागरजी महाराज को ऐसा अर्थ इष्ट है क्या ? यदि नहीं तो 'उत्सर्पण' शब्द का अस्मदभिप्रेत अर्थ की ही शरण लेनी पड़ेगी। ___ 'उत्-सुप्' का अर्थ 'त्याग', 'अर्पण' यदि करते हैं तो यह अर्थ समुचित है क्योंकि व्युत्पति के अनुसार 'उत्सर्पिणी' का अर्थ (रूपरसादि गुणों को ) 'अर्पण भारने वाजा' "विशेष-विशेष कारने वाला होता है। 'द्रव्य का उत्सव बर्थ भी मका 'अर्पग'ही होता है नात्

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