Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 121
________________ ( 116 ) इससे निःसंदेह समझ सकते हैं कि 'उत्सर्पण' का अर्थ, 'बोली बोलना' या 'चढ़ावा करना' होता ही नहीं है। पूज्यपाद श्रीमान् जैनाचार्य श्री आत्मारामजी महाराज ने भी अपने "जैन तत्वादर्श" में श्राद्धविधि के पंचम प्रकाश में बताये हुएं 11 कृत्यों का जहाँ वर्णन किया है, वहाँ 11 कृत्यों में 'जिनधनवृद्धि' के विषय में चढ़ावे संबंधी कुछ भी उल्लेख नहीं किया है / देखिए"तथा देवद्रव्य की वृद्धि वास्ते प्रतिवर्ष मालोद्धट्टन करे, इन्द्रमाला और माला भी यथाशक्ति करे, ऐसे ही पहरावणी, नवीन धोती, विचित्र प्रकार का चंदुआ, अंगलहणां, दीपक, तेल, जातिवंत केसर, चन्दन, बरास कस्तूरी प्रमुख चैत्योपयोगी वस्तु, प्रतिवर्ष यथाशक्ति से देवे।" पृष्ठ 474 इससे वाचकवृन्द समझ सकता है कि श्राद्धविधिकार ने 'जिनधनवृद्धि' के लिए उत्सर्पणपूर्वक आरती उतारने का जो कथन किया है उसका अर्थ 'बोली बोलने के द्वारा आरती उतारना' / यदि ऐसा अर्थ होता तो श्री आत्मारामजी महाराज नहीं करते क्या ? जब उन्होंने भी ऐसा अर्थ नहीं किया तब फिर उस अर्थ की खींचतान करना व्यर्थ है।

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