________________ बुद्धि से अर्पित बस्तुएं ही देवद्रव्य है' यह लक्षण यदि माना जाएँ तो फिर पूजा - आरती वगैरह में बोली गई बोली की आमदनी किसी भी खाते में ले जा सकते हैं। जो द्रव्य अभी तक देव को समर्पण हुआ नहीं, जिस द्रव्य के लिये किसी प्रकार का निश्चय हुआ नहीं है, उस द्रव्य को किसी भी खाते में ले जाने का संघ क्या प्रस्ताव पारित नहीं कर सकता है ? बोली का हेतु तो सिर्फ क्लेशनिवारणार्थ है उसका देवद्रव्य से क्या सम्बन्ध ? इस प्रकार के परंपरागत द्रव्य की, जिस समयमें, जिस क्षेत्र को अत्यधिक आवश्यकता हो अर्थात् जिस क्षेत्र को अधिक पोषण की आवश्यकता हो, उस समय में, उस क्षेत्र में, उस द्रव्य को ले जाने का संघ निश्चय करता है और इस प्रकार विचार पूर्वक कार्य करने में ही संघ का संघत्व समाहित है। __ वर्तमानकाल में साधारण खाते को पुष्ट करना अत्यावश्यक है। इस बात का हम अनेक बार अनुभव भी कर चुके हैं इसलिए अब से बोली के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाने का निर्णय, प्रत्येक ग्राम - नगर के संघ को कर लेना आवश्यक है / साथ-साथ जो द्रव्य भंडारों में भरा पड़ा है उसका व्यय प्राचीन मन्दिरों के जीर्णोद्धार में करते रहना चाहिये। यह तो हम अच्छी तरह से जानते ही हैं कि देवद्रव्य के नाम से एकत्रित द्रव्य