________________ (60 ) सर्वश्रेष्ठधार्मिक कृत्य है उसदिन में परिवर्तन करना कितना गंभीर कार्य कहा जायेगा ? फिर भी परिवर्तन हुआ और सभी ने मान्य किया, इसका क्या अर्थ? ऐसी तो अनेक बाते हैं जिनमें परिवर्तन हुआ है और उनका हम अनुभव भी करते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन सम्बन्धी अनेक उदाहरण भी मैंने अपनी पत्रिकाओं में स्थान - स्थान पर दिये हैं / बोली के रिवाज में भी अनेक स्थानों पर हुए परिवर्तनों को बता चुका हूं। फिर भी 'परिवर्तन नहीं हो सकता है,' 'परिवर्तन नहीं हो सकता है ,' साधारण खाते में नहीं ले जा सकते हैं।' इस प्रकार बोलते हुए सिर धुनते ही रहने का क्या मतलब ? जिस कार्य के करने में किञ्चित् भी शास्त्रीय रुकावट नहीं है और भविष्य में जैन समाज की उन्नति निहित है। उस कार्य का निषेध बिना प्रमाणों के ही करना, जान बुझकर समाज को उन्मार्ग पर ले जाने के तुल्य नहीं है क्या? सत्य बात तो यह है कि 'देवदव्य' का यथार्थ लक्षण और यथार्थ स्वरूप यदि समझ में आ जाएँ तो इस विषय में विवाद का कोई कारण ही नहीं रहता / मैं अपनी ततीय पत्रिका में 'द्रव्यसप्तति' की दूसरी गाथा देकर देवद्रव्य का लक्षण बता चुका हूं। 'देव को समर्पण