Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

View full book text
Previous | Next

Page 112
________________ ( 107 ) भ्रान्तिजनक अर्थ करना, उनके जैसे एक साधुपुरुष के लिए अशोभनीय कार्य है। उस पाठ के अर्थ में आगे बढ़कर 'उत्सर्पण पूर्वक आरती उतारना' के सम्बन्ध में भी गड़बड़ कर दिया है। सागरजी महाराज "उत्सर्पण पूर्वक आरती उतारना" अर्थात् "बोली बोल कर आरती उतारना" ऐसा अर्थ करते हैं, परन्तु ऐसा अर्थ वे कैसे करते हैं यही समझ में नहीं आता है। स्मरण रखना चाहिये कि हम वोली बोलने के रिवाज के विरुद्ध में नहीं हैं। यह भी जानते हैं कि बोली बोलने की पद्धति आमदनी बढ़ाने का साधन है। इसी कारण हमारा ऐसा मन्तव्य है कि सभी क्षेत्रों को पुष्ट करने वाले साधारण खाते को बोली द्वारा पुष्ट करने का प्रयत्न जैन समाज को करना चाहिए। इस पर भी सत्य के लिए हमें कहना पड़ता है कि बोली बोलने की प्रथा शास्त्रीय विधान नहीं है किन्तु श्री संघ ने आमदनी बढ़ाने के लिये स्वबुद्धि से इसे कल्पित किया है। हमारी इस मान्यता को श्राद्धविधि के प्रस्तुत पाठ से किञ्चित् भी आँच नहीं आती है। यह सागरजी महाराज को खूब समझना चाहिये, क्योंकि 'उत्सर्पण' शब्द का अर्थ, वे 'बोली बोलना' करते हैं, वह असत्य है और ऐसा अर्थ कहीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130