________________ / 12 ) का उपयोग सिर्फ मन्दिरों और मूर्तियों के लिये ही हो सकता है जबकि साधारण खाते के द्रव्य का मुंघ यथोचित रूप से सातों ही क्षेत्रों में उपयोग कर सकता है (इससे पूर्व प्रकाशित 'सप्तक्षेत्रीयनाटक' पुस्तक के पढ़ने से सातों क्षेत्रों का ज्ञान हो जायेगा-लेखक-मुनि प्रवीणविजय)। अर्थात् - साधारण खाते के द्रव्य का जिस प्रकार अन्य कार्यों में उपयोग हो सकता है उसी प्रकार चैत्य(मन्दिर) संबंधी कार्यों में भी व्यय हो सकता है तो फिर बोली के द्रव्य को अब से साधारण खाते में ले जाने का निर्णय क्यों न किया जाय ? और यह तो अनेक बार कहा जा चुका है कि बोली के साथ देवद्रव्य का कुछ भी संबंध नहीं है क्योंकि बोली का रिवाज सिर्फ क्लेशनिवारणार्थ ही है, अतः उस द्रव्य को किसी भी खाते में ले जाने का संघ अधिकारी है। ___ इस प्रकार साधारण खाते को पुष्ट करने से सातों ही क्षेत्रों की पुष्टि अनायास ही हो जायेगी / यहाँ कोई ऐसा न समझ ले कि साधारण-खाते में विशेष द्रव्य एकत्रित हो जाने पर लोग खा जायेंगे। इसका कारण तो मैंने अपनी दूसरी पत्रिका में बता दिया है कि साधारण . द्रव्य भी देवद्रव्य जितना ही महत्वपूर्ण है। जैसे देवद्रव्य के भक्षण से पाप लगता है वैसे ही साधारण द्रन्य के