Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 109
________________ के लिए सावधान"। देखिए कितना अविनय ? विजय धर्मसूरिजी महाराज ने उनका या जैन संघ का क्या अपराध किया है कि उन्हें माफी मँगवाने के लिये वे बाहर आये ?. तटस्थदृष्टि से यदि देखा जाय तब तो आनन्दसागर जी महाराज को हो क्षमा मांगनी चाहिए। उन्होंने बिना समझे ही जल्दबाजीबचपना कर विजय धर्मसूरिजी महाराज के विचारों को असत्य बताया। एक व्यक्ति के विचार को बिना प्रमाण के वैसे हो धिक्कार देना, कानून की दृष्टि में क्या कम अपराध है ? इस प्रकार के गम्भीर अपराधी आनंदसागर जी महाराज किस प्रकार की शिक्षा के "पात्र हैं (जिन्होंने वयोवृद्ध, संयमवृद्ध, और ज्ञानवृद्ध महात्मा को माफी मांगने के लिये सूचित किया है। इस सम्बंध में विचार करने का कार्य श्रीसंघ के तटस्थ 'विचारको को सुपुर्द करता हूं। श्री आनन्दसागरजो महाराज ऐसा समझते होंगे कि 'श्राद्धविधि' के पाठ का प्रमाण मैंने दिया तो है, परन्तु मुझे आश्चर्य होता है कि उस पाठ पर वे इतने अधिक मोहित क्यों हो रहे हैं ? उस पाठ में ऐसा क्या उन्होंने देख लिया कि प्रस्तुत चर्चा हेतु उन्होंने उस पाठ का सहारा लिया है। मुझे स्पष्ट कहना चाहिए कि उस पाठ का उन्होंने गलत अर्थ किया है और वह सरलजनसमुदाय को

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