Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 100
________________ बुद्धि से शास्त्रों के रहस्यों का अनुशीलन कीजिए। समय के ज्ञाता बनिए / जैसे समय-समय पर द्रव्य - क्षेत्र काल और भाव को ध्यान में रखकर समाज के रीतिरिवाजों में परिवर्तन होता ही रहा है वैसे ही वर्तमान समय में भो सामाजिक सुव्यवस्था हेतु कुछ वर्षों से चले आ रहे अनेक रिवाजों में परिवर्तन करना आवश्यक है। स्पष्टतया मुझे कहना चाहिये कि आरती-पूजा वगैरह की बोली की जो आमदनी होती है वह देवद्रव्य में जाये या साधारण खाते में इसके साथ मेरा किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं है परन्तु जैन समाज की दिन - प्रतिदिन बढ़ी हुई विषमावस्था को देखकर ही मैंने यह प्रश्न उपस्थित किया है। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मैं केवल शास्त्रनिरपेक्ष बुद्धिवाद के व्यापार का पक्षपाती नहीं हूं। किसी प्रकार के विचारार्थ शास्त्रीयदृष्टि को सर्वप्रथम आगे करने की आवश्यकता है। शास्त्ररूपी दीपक लिये बिना ही तकरूपी वन में विचरण करना, मैं उचित नहीं मानता है किन्तु शास्त्रों के अवलोकन में यदि थोड़ा सा भी प्रमाद हो जाय तो अर्थ का अनर्थ होना संभव है। यह हमेशा स्मरणीय है। प्रस्तुत देवद्रव्य सम्बन्धी मेरे विचार शास्त्राज्ञा से . किञ्चित भी विरुद्ध है क्या ? मुझे पूर्ण विश्वास है कि

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