________________ ( 23 ) महान् गीतार्थ, अकबर प्रतिबोधक, जगद्गुरु श्रीहीरविजय सूरि महाराज के वचनों से भी सिद्ध होता है / _ 'हीर प्रश्नोत्तर के तीसरे प्रकाश के 11 वे प्रश्न में जगमाल ऋषि श्री हीरविजय सूरि महाराज को पूछते "तैलादिमाननेनादेशप्रदानं शुद्धयति न वा ?" अर्थात्- 'तेल आदि की बोली से आदेश देना शुद्ध है या नहीं ?' इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आ० भ० श्री हीर विजय सूरि महाराज कहते हैं कि___तैलादिमाननेन प्रतिक्रमणाद्यादेशप्रदानं न सुविहिताचरितं, परं क्वापि-क्वापि तदभावे जिनभवनादि निर्वाहासंभवेन निवारयितुमशक्यमिति” / ___अर्थात्' तेल आदि की बोलियों द्वारा प्रतिक्रमणादि में आदेश देना सुविहिताचरित नहीं है परन्तु किसीकिसी स्थान पर इन बोलियों के बिना जिनभवनादि का निर्वाह असंभव होने के कारण इस रिवाज को रोकना अशक्य है। आजकल जैसे प्रत्येक बोली में घी बोला जाता है वैसे उस समय में (हीरविजय सूरि महाराज के समय