Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 51
________________ पुष्टि हेतु लोगों को प्रेरणा करने वाले अथवा अमुक वर्षों से चली आ रही परम्परा में परिवर्तन करने का सूचन करने वाले को भवभ्रमणं का भय बताना, यह शास्त्रों के रहस्य को नहीं समझने का ही परिणाम है। ___ सुना जाता है कि आणंदजी कल्याणजो को पेढी में देवद्रव्य को रकम बहुत है अतः साधारणखाते को पुष्ट बनाने की तरफ पेढी के कार्यकर्ताओं का ध्यान गया। परिणामतः पेढी के कार्यकर्ताओं की सूचना से ही, श्रीं सिद्धाचलजी की पेढो के कार्यकर्ता आगन्तुक यात्रियों को देवद्रव्य की बजाय साधारण खाते में हो रकमें लिखवाने (भरवाने) को कहते हैं, तो क्या इस प्रकार की प्रेरणा देने वाले भवभ्रमण करने वाले बनेंगे ? अस्तु ! सारांश- सम्पूर्ण लेख का सारांश यही है कि रोतिरिवाजों में सदैव समयानुकूल परिवर्तन होता ही आया है और हो भी सकता है / आरती-पूजा वगैरह की बोली का रिवाज तो संघ की कल्पना से पड़ा हुआ है और रिवाज किसी विशेष कारण को लेकर पड़ा हुआ है। वस्तुतः यह रिवाज सुविहित आचरित नहीं है। इस प्रकार हीरविजयसूरि महाराज स्पष्टतापूर्वक कहते हैं तथा देवद्रव्य की वृद्धि की अपेक्षा साधारण द्रव्य को वृद्धि करने से सातों क्षेत्रों की पुष्टि हो सकती है। श्राद्धविधि, धर्मसंग्रह, संबोधसप्तति आदि ग्रन्थों

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