Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 60
________________ अर्थात-देवद्रव्य की वृद्धि, सम्यक् प्रकार से रक्षण! और अपूर्व-अपूर्व धन के प्रक्षेपादि द्वारा करनी चाहिए। वृद्धि भी कुव्यापार को छोड़कर, सद्व्यवहारादि विधिपूर्वक ही करनी चाहिए। श्राद्धविधि के पृष्ठ 74 पर"वृद्धिरत्र सम्यग्रक्षणापूर्वाऽपूर्वार्थप्रक्षेपादिना अवसेया।" अर्थात्-वृद्धि सम्यक् प्रकार से रक्षण एवं अपूर्व-अपूर्व द्रव्यादि (वस्तु वगैरह) का प्रक्षेपादि (डालने) द्वारा करनी चाहिए। इस प्रकार अनेक ग्रन्थों में देवद्रव्य की वृद्धि करने का उपाय बताया गया है। उपयुक्त उद्धरणों से स्पष्ट हो जाता है कि देवद्रव्यं की वृद्धि, भण्डार में अनेक प्रकार की उत्तमोत्तम वस्तुओं को डालने-रखने से करनी चाहिये। फिर वे उत्तमोत्तम वस्तुएं ( द्रव्यादि ) चाहे जिस निमित्त से भी भंडार-मंदिर को अर्पण की जाये, परन्तु वे देवद्रव्य की वृद्धयर्थ ही गिनी जाती है। देखिए तो सही देवद्रव्य की वृद्धि हेतु कैसे कैसे कार्य करने के शास्त्रों में उल्लेख आते हैं धर्मसंग्रह के पृष्ठ 245 पर"देवद्रव्यवृद्ध यर्थ प्रतिवर्ष एन्द्री अन्या वा माला

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