________________ ( 76 ) प्रवृत्ति चल रही है, उनमें से अनेक रिवाज, शास्त्रविरुद्ध ही है तथा देवद्रव्य की वृद्ध यर्थ ऐसे अनुचित व्यवहार क्यों करते हैं। यह समझ में नहीं आता, जिन व्यवहारों के लिए गहस्थों को भी निषेध किया जाता है और न करने के लिए ही पुनः-पुनः उपदेश भी दिया जाता है उन्हीं व्यवहारों को यदि देवद्रव्य की वृद्धि हेतु प्रयोग में लाया जाय तो कैसी विचित्र प्रवृत्ति ? ___ ऐसी प्रवृत्तियों से- ऐसे मार्गों से होने वाली देवद्रव्य की वृद्धि अविधिपूर्वक ही कही जायेगी और अविधि से की गई देवद्रव्य की वृद्धि का शास्त्रकार निषेध करते हैं। 'द्रव्यसप्तति' ग्रन्थ के ८वें श्लोक की टीका में कहा गया है कि "अविधिना च विहिता कालान्तरे समूलं चैत्यादिद्रव्यं विनाशयति / यतः-- अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति / प्राप्ते च षोडशे वर्षे समूलं च विनश्यति // 1 // अर्थात्-अविधि से की गई वृद्धि, कालान्तर में समूल देवादिद्रव्य का नाश करती है क्योंकि अन्यायसे उत्पन्न किया हुआ द्रव्य दश वर्ष तक रहता है और सोलवें वर्ष तो मूल सहित उसका नाश हो जाता है / महानुभावों-! थोड़ा सा उपयुक्त पाठ पर ध्यान