________________ / 56 ) करती थी। उस समय स्वप्न उतारे जाते थे क्या? स्वप्नों की बोली होती थी क्या ? इसका उत्तर नका-- रात्मक ही मिलेगा। अतएव स्वप्न उतारने की परंपरा नवीन ही है। यह निर्विवाद सिद्ध है। इसमें किञ्चित् भी शंका को स्थान नहीं है। ऐसा हुआ कि कुछ वर्षों पर्व किसी गाँव में भक्तिनिमित्त अथवा किसी भी कारण से स्वप्न उतारे गये / उसका अनुकरण दूसरे ने किया। बढ़ते-बढ़ते यह रिवाज इतना अधिक बढ़ गया कि आज प्रायः प्रत्येक ग्राम में स्वप्न उतारे जाते हैं परन्तु इसपर से यदि कोई व्यक्ति ऐसा कह दे कि 'स्वप्न का रिवाज तो अनादिकाल से चला आ रहा है--प्राचीन है।' तो क्या इस बात को कोई सत्य मान सकता है ? इससे कोई यह न समझ ले कि यह रिवाज गलत है अतः इसकी आवश्यकता नहीं है? मेरा अभिप्राय ऐसा नहीं है, किन्तु मेरा कथन इतना ही हैं कि 'भले ही भक्ति निमित्त नये-नये उचित रिवाज चालू हुए हो' परन्तु यथार्थ बात को समझना चाहिये / इसी प्रकार बोलीका रिवाज भी प्रचलित है। विचारणीय प्रश्न तो यह है कि यह बोली बोलने का रिवाज अनादिकाल से ही चला आ रहा है या कुछ वर्षों से ही चला है ? तथा इस रिवाज में परिवर्तन भी हो सकता है या नहीं ? इसका मध्यस्थ दृष्टि से अवलोकन करना चाहिये / 'प्राचीन रिवाज है...