Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 72
________________ वृद्धि के जो साधन अनुकुल मालुम होते हैं उस समय में, उस क्षेत्र में, उन साधनों का उपयोग किया जाता है और उनमें संघ द्वारा परिवर्तन भी होता रहता है। भाव नगर में चाँदी के रथ का नकरा पहले 45 रुपये का था किन्तु बाद में घटाकर 25 रुपये का कर दिया। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी जहाँ जहाँ रथ, पालखी, आंगी, मुकुट वगैरह नई चीजें तैयार होती हैं वहाँवहाँ का संघ उस स्थान के संयोगों के अनुकुल अलगअलग नकरा निर्धारित करता है / कारणवश उसमें परिवर्तन भी करता है। इससे कोई यह नहीं समझ ले कि इसप्रकार की प्रथाओं में परिवर्तन करने वाला संघ अथवा इस प्रकार का उपदेशक आमदनी का हानिकर्ता अर्थात् भंग करने वाला गिना जाता है। यदि इस प्रकार के रिवाजों में परिवर्तन करने वाला व्यक्ति आमदनी का नाशक माना जाय, तब तो अब तक असंख्य रिवाजों में परिवर्तन करने वाले कितने ही संघ तथा आचार्य आमदनी के नाश कर्ता हो जाय / अरे ! स्वयं जो "रिवाजों में परिवर्तन हो ही नहीं सकता है। इस प्रकार के सिद्धान्त की प्ररूपणा करते हैं उन्होंने भी अब तक कितने ही रिवाजों में परिवर्तन करने का उपदेश बहुत से गाँवों में दिया है और किसी-किसी स्थान में परिवर्तन कराये भी हैं / तब वे स्वयं भी क्या उस नियम के

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