Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 57
________________ ( 52 कार करते हैं, वे देवद्रव्य का निषेध कर ही नहीं सकते हैं क्योंकि जहाँ मूर्ति है वहाँ मूर्ति के लिए उपयोगी वस्तुएँ भी चाहिए ही।" जैसे एक गृहस्थ को अपने घर के लिए उपयोगी राचरचीले ( फर्नीचर ) आदि सामान की जरूरत होती है, वैसे ही मूर्ति के लिए भी उपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता रहती है। अथवा अक साधु को जितनी स्वचरित्र रक्षार्थ उपकरणों (साधनों) की आवश्यकता पड़ती है उतनी ही आवश्यकता मूर्ति के लिए मूर्ति संबंधी उपयोगी वस्तुओं की होती है। मूर्तियों के लिए मंदिरों का निर्माण करवाना, आभूषणादि करवाना, प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाना तथा किसी भी प्रकार की भगवान् संबंधी होने वाली आशातनाओं को दूर करवाना इस प्रकार के कार्यों के लिए देवद्रव्य की अत्यधिक आवश्यकता है इसके लिए कोई भी मना नहीं कर सकता है और इसीलिए ही मैंने अपनी पूर्व की दोनों पत्रिकाओं में जोर-शोर से देवद्रव्य की आवश्यकता स्वीकृत की है। तदपि (फिर भी ) कितने ही लोगों की ओर से ऐसा कोलाहल ( हो हल्ला ) करने में आया है कि," मानो मैं देवद्रव्य का निषेधक हूँ, मैं देवद्रव्य की समस्त ( सम्पूर्ण ) आय बन्द कर मंदिरों और मतियों का उत्थापन करना चाहता ह।' ऐसे . मिथ्या ( झूठे ) आक्षेप ( आरोप) लगाने वाले

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