________________ ( 50 ) बुद्धि से अर्पण नहीं करने के कारण, वह उस भोजनसामग्रो का अन्य कार्य में भी उपयोग करने का अधिकारी था और इसीलिए हो उसने उस भोजन - सामग्री में से साधु भगवंत को भी वहोराया / अद्यापि देखते हैं कि कई स्थानों परं शांतिस्नात्र होती है, तब उसमें रखने के लिए नैवेद्य, विशेषरूप से स्वतंत्र-पृथक् रसोईघर ( रसोड़ा / खोलकर बनाया जाता है। हम जानते भी हैं कि यह विशेष भोजन-सामग्री प्रभु पूजा में ही रखने के लिए बनवायी गयी है फिर भी वह भोजनसामग्री - मिष्ठान्न वगैरह अन्य कार्यों में भी ले जा सकते हैं, ले जाते भी हैं, क्योंकि भोजन-सामग्री चाहे जितनी भी बनवाई हो, परन्तु पूजा के निमित्त की तो, उसमें से जितनी प्रभु के आगे चढ़ाई जाती है वही होती है / हाँ, प्रभु के आगे समर्पण करने के पश्चात् उसे दूसरे कार्यों में उपयोग में नहीं ले सकते हैं। इस प्रकार के अनेक दृष्टान्तों से मैंने अपनी प्रथम एवं द्वितीय पत्रिका में बता दिया है कि जब तक किसी भी वस्तु के लिए, किसी भी खाता विशेष के लिए समर्पण बुद्धि नहीं होती है तब तक वह वस्तु उस खाते की नहीं हो सकती है / अंगरचना के दिन लाखों के आभूषणों को भगवान के अंग पर चढ़ाया जाता है फिर भी दूसरे दिन आंगी उतारते ही पुनः अपने-अपने घर ले जाते हैं। यह क्या