Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ में देवद्रव्य एवं साधारण द्रव्य-इन दोनों की वृद्धि हेतु समान ध्यान देने का ही कथन किया गया है तथा किसी अपेक्षा से साधारण द्रव्य को अधिक महत्व दिया गया है। अतः अब तक जिन-जिन बोलियों के द्रव्य को देवद्रव्य में ले जाया जाता रहा है अब से उन-उन बोलियों के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाने का यदि श्री संघ निर्णय करना चाहे तो निः संकोच कर सकता है और ऐसा करने में शास्त्रीय दोष किञ्चित् भी नहीं दिखता है / अतः विशेष रूप से प्रत्येक ग्राम और शहर के श्री संघों को अनुरोधपूर्वक कहता हूं कि यदि डूबते हुए जैनसमाज को बचाना चाहते हो, प्रत्यक्ष यापरोक्ष रीति ( सीधी या टेढी रीति ) से, देवद्रव्य के भक्षण से लोगों को दूर रखना चाहते हो और सातों ही क्षेत्रों को पुष्ट करके जैनसमाज के प्रत्येक अंग को पुष्पित एवं फलित रूप में देखना चाहते हो तो इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देना और यदि यथार्थ-सत्य-उचित मार्ग लगे तो उस तरफ प्रवृति करना और आपके समीपवर्ती अन्यान्य ग्रामों और शहरों के संघों को भी इस तरफ अर्थात् ऐसी ही प्रवृत्ति करने की प्रेरणा करना। ... इतनी प्रेरणा कर, इस द्वितीय पत्रिका को यही . समाप्त करता हूं। इसके बाद तृतीय पत्रिका में भी इसी

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130