________________ ( 44 ) और देवद्रव्य का दुरुपयोग खुलकर होने पर भी देवद्रव्य की वृद्धि का ही उपदेश देना और जिन बोलियों के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाने में किसी प्रकार का शास्त्रीय दोष प्रतीत नहीं होने पर भी, भवभ्रमण : का भय बताना, यह जान बूझकर ही लोगो को उल्टे मार्ग पर ले जाने ( चढ़ाने ) के बराबर नहीं है क्या ? ___कदाचित् किसी के मन में यह हो कि साधारण द्रव्यमें यदि वृद्धि कर दी जायेगी तो लोग लड्डू बनाकर खा जायेंगे / यह तो उनका मिथ्या भ्रम ही है। साधारण द्रव्य का भी देवद्रव्य के जितना ही महत्व है, इस बात को प्रथम ही देख चुके हैं - समझ चुके हैं / अर्थात् जितना पाप देवद्रव्य के भक्षण से लगता है उतना ही पाप साधारणद्रव्य के भक्षण से भी लगता है / साधारण द्रव्य का यह अर्थ नहीं है कि कोई उसका भक्षण कर ले फिर भी पाप नहीं लगे / साधारण द्रव्य का उपयोग सप्तक्षेत्रों में करना कहा है उसमें श्रावक-श्राविका भी आजाते हैं परन्तु वे श्रावक-श्राविका कैसे ? जो दुःखी हो, दयनीय अवस्था में हो तथा जिनके निर्वाह के लिए अन्य कोई साधन ही न हो, परन्तु साधनसम्पन्न गृहस्थ उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। दुःखी श्राधक श्राविका भी तभी उपभोग कर सकते हैं जब श्री संघ प्रदान करे, अन्यथा नहीं। देखिए-श्राद्धविधि के पृष्ठ