________________ ( 24 ) में ) बोलियाँ में मुख्यतया तेल बोला जाता था इसी लिए उपयुक्त पाठ में 'तैलादि' कहा गया है। परम पूज्य हीरविजयसूरि महाराज उपयुक्त पाट में स्पष्टता पूर्वक बता रहे हैं कि 'बोली बोलना सुविहित नहीं है जब एक महान् आचार्य भी बोली के रिवाज को शास्त्रीय नही मानते हैं, तब फिर बोली के रिवाज को ईश्वर वाक्यवत् समझने वाले कितनी भयंकर भूल करते हैं ? यह बारम्बार कहने कि आवश्यकता नहीं है। कदाचित् कोई ऐसा कहे कि भले ही बोली का रिवाज क्लेश निवारणार्थ रखा हो, परन्तु बोली का द्रव्य 'देव द्रव्य' में ही ले जाने का नियम क्यों बनाया ?' इसका उत्तर भी हीर विजय सूरि महाराज के उपयुक्त पाठ से स्पष्टतया ज्ञात हो जाता है। किसी - किसी स्थान पर इन बोलियों के बिना जिनभवनादि का निर्वाह असंभव होने के कारण, उस रिवाज को बंद करना अशक्य है।' इन उपयुक्त शब्दों से ही ज्ञात हो जाता है कि उस समय में प्रायः जिन मंदिरादि की रक्षा हेतु पर्याप्त साधनों का अभाव होने के कारण कितनी ही बोलियाँ के द्रव्य को देवद्रव्यादि में ले जाने का रिवाज चल गया था और यही कारण मैंने अपने प्रथम लेख में भी बताया है।