Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

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Page 38
________________ तब उक्त महात्मा उनके वचनों को शास्त्र के विरुद्ध बतलाते और भवभम्रण का कारण कहकर लोगों को भ्रमित एवं भयभीत करते / इसका अर्थ क्या हो सकता है ? वाचकवृन्द स्वंय भी समझ सकता है कि यह तानाशाही के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। अस्तु / .. महानुभावों ! उपयुक्त अनेक दृष्टान्तों से यह तो ज्ञात हो ही गया होगा कि समयानुसार किसी भी रिवाज (परंपरा) में परिवर्तन करने का श्री संघ को अधिकार है और परिवर्तन भी हुए हैं अर्थात् श्री संघ ने किये हैं। यदि इस प्रकार से परिवर्तन नहीं हुए होते या नहीं किये गये होते तो अभी के साधु-सन्तों के आचार - विचारों में और गृहस्थों की प्रवृत्ति में तथा प्राचीन परंपरा में आकाश पाताल का जो अतंर प्रतीत होता है वह कैसे संभव होता? . (अनुवादक की कलम से- आ० भ० श्री लक्ष्मीसूरिजी म. सा. कृत अष्टाह्निका व्याख्यान में उल्लेख मिलता है कि आ० भ० श्री हीरविजय सूरिजी म० सा० के शिष्य उपा० श्री शान्तिंचन्द्र जी म. सा. को उनके शिष्य बाँसों पर बैठाकर स्वस्कंधों पर अकबर बादशाह के पास ले गये थे कटकदेश को विजित करने के प्रसंग में। इससे सभी समझ सकते हैं कि पहले गुरुओं आदि के पैदल विहार करने में असमर्थ

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