________________ ही नहीं परन्तु एक ही स्थान में और एक ही समय किसी के पास से पूरा लिया जाता है तो किसी के / से आधा ही, तो किसी के पास में बिल्कुल भी / लिया जाता है। .. __ अर्थात उपधान करने वाले की शक्ति को देख नकरा लिया जाता है, तब फिर क्या कम नकरे देने वाले और लेने वाले को भवभ्रमण करने वाले समझाना चाहिए ? भगवान की आरती किसी स्था पर पाँच व्यक्तियों द्वारा उतारी जाती है तो कहीं एक व्यक्ति द्वारा ही / अर्थात् - किसी स्थान पर पाँच पाँच सात - सात आरती का घी बोला जाता है तो कहीं सिर्फ ओक ही आरती का घी बोला जाता है। तो क्या कम आरतियों के घी को बोलने का रिवाज रखने वाले ट्रस्टियों को भवभ्रमण करने वाला समझना चाहिए / सभी समझ सकते हैं कि जहाँ की जैसी अनुकूलता और जहाँ की जैसी शक्ति हो उसी के अनुसार रिवाज रखे जाते हैं / यह बात ही स्पष्टता का अवलोकन करा देती है कि-"बोली बोलने के रिवाज ही अपनी कल्पना के रिवाज है अर्थात् मनकल्पित है इसी कारण इन रिवाजों में उचित प्रकार से समयानुसार परिवर्तन करने में किञ्चित् ( अंश मात्र) भी शास्त्रीय दोष दिखाई नहीं देता है।"