Book Title: Devdravya Sambandhi Mere Vichar
Author(s): Dharmsuri
Publisher: Mumukshu

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ ( 21 ) बोलियाँ बोली जाती हैं। इन बोलियों के बोलने का मुख्य हेतु क्या हैं अथवा क्या होना चाहिए ? यह मैं अपनी प्रथम पत्रिका में बता चुका हूं। भगवान की पूजा करना, आरती उतारना आदि कर्तव्य अन्तःकरण की शुद्धि के लिए है। हृदय में शुभ भावों का उद्भव हो, इसलिए है। ये सब भक्ति के कार्य हैं और भक्ति-कार्यो की बोली ही नहीं हो सकती, यह बात सरलता से सभी समझ सकते हैं यदि इस प्रकार ज्यादा द्रव्य प्रदान करने वाले को ही पूजा या आरती के फल की प्राप्ति होती हो तब तो बिचारे गरीब-निर्धनों का तो निस्तार ही नहीं होगा तथा पूजा, आरती जो कुछ भी करेंगे, वह सब व्यर्थ ही जायेगा, परन्तु ऐसा नहीं है। भगवद्भक्ति का फल तो व्यक्ति के अन्तःकरण के अध्यवसाय पर निर्भर है। केवल अपनी महत्त्वाकांक्षा दिखाने के लिए अथवा दूसरे के प्रति ईर्ष्यावश 5 हजार मण घी बोलकर भी यदि कोई पूजा करता है और पूजा करते समय भी उसका हृदय कषायों से ओत-प्रोत है तो उसे उसकी -पूजा का फल क्या मिलेगा ? जबकि एक सामान्य स्थिति का व्यक्ति शुभ भावना से कषाय, रहित होकर भले ही पाव सेर घी की बोली बोले बिना ही प्रभु की पूजा करे तो भी उसे निश्चित ही पूजा के फल की प्राप्ति होगी अर्थात् उसके अन्तःकरण की शुद्धि अवश्यमेव होगी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130