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१०
चचरी
सन्निहिया न खमरा जहाँ पडिमा - किये हुए अपराधको सन्निहित देवता नहीं सहहन करते जैसे प्रतिमा । मूल नायकजी सबके आब्मुदय हेतु होते हैं अतः मूलनायकजीका स्पर्श स्त्रियाँ नहीं करती हैं । जो आरती एक स्थान पर जिनेश्वर देवके उतार दी जाती है, उसीको दूसरे स्थान पर जिनेश्वर देवके सन्मुख जहाँ नहीं उतारी जाती निर्माल्य रूप हो जाने से ||२४||
जहिं फुल्लई निम्मलु न अक्खय-वणहलइ मणिमंडणभूसणइ न चेलइ निम्मलइ | जित्थु न जइहि ममत्तु न जित्थु वि तव्वसणु, जहि न अत्थि गुरुदंसियनी इहि म्हसणु ॥ २५ ॥
अर्थ - जहाँ फूल निर्माल्य होते हैं न कि अक्षत – वनफल; और न मणि मण्डित अलंकार या निर्मल वस्त्र ही । जहां साधु यह मेरा मन्दिर है ऐसी ममता नहीं रखते हैं । न जहां उनका - साधुओंका रहना ही होता है। जहां गुरु-दर्शित नीतिको भुलाई नहीं जाती । २५ ।
जहिं पुच्छिय सुसावय सुहगुरुलक्खणइ, भणिहि गुणन्नुय सच्चय पच्चक्खह तणइ । जहिं इक्कुतु विकीरइ निच्छइ सगुणउ, समयजुत्तिविहडन्तु न बहुलोयह तणउ ॥ २६॥
अर्थ -- जहां पूछनेपर गुणज्ञ सुश्रावक सच्चे आत्म प्रत्यक्ष श्रीसद्गुरुमहाराज के शुभ लक्षणों को बताते हैं। जहां एक भी सुश्रावकका कहा हुआ गुण सम्पन्न कार्य निश्चयपूर्वक किया जाता है, और सिद्धान्त युक्तिसे मेल न रखने वाला बहुतसे लोगों का कहा हुआ कार्य नहीं किया जाता | २६ |
जहि न अप्पु वन्निज्जइ परु वि न दुसियइ, जहिं सग्गुणु वन्निज्जइ विगुणु उवेहियइ । जहि किर वत्थु वियारणि कसु वि न बीहियइ
जहि जिणवयणुत्तिन्नु न कह वि पर्यंपियइ ||२७||
अर्थ- जहां न अपनी स्तुति की जाती है न दूसरेको दूषित-निन्दित ही किया जाता है। जहां गुणवानकी तारीफ की जाती है एवं निर्गुणकी उपेक्षा। जहां वस्तु विचारणमेंयथार्थ बात कहने में किसीका भी भय नहीं माना जाता है । जहाँ कभी भी जिन वचनोंसे उनका हुआ - उत्सूत्र वचन - अविधि रूप नहीं बोला जाता है । २७ ।
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