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जगत्प्रसिद्ध-दादाभिधान-जङ्गमयुगप्रधान-भट्टारक
सुविहित खरतर विधि मार्ग प्रवर्तक सूरि सम्राट श्री श्री १००८ श्री मज्जिनदत्त सरीश्वर जी महाराज विरचित
उपदेश (धर्म) रसायनरासः
अनुवादक-श्रीमजिनहरिसागर सूरि पणमह पास-वीरजिण भाविण तुम्हि सबि जिव मुञ्चहु पाविण घरववहारि म लग्गा अच्छह
खणि खणि आउ गलंतउ पिच्छह ॥१॥ अर्थ- हे भव्य लोगों ? श्री पार्श्वनाथ खामीको एवं शासनाधीश्वर श्री महावीर स्वामीको भावपूर्वक प्रणाम करो जिससे कि तुम सबलोग पापकर्मोंसे मुक्त हो जाओ। तुम घर व्यापारमें ही मत लगे रहो, प्रतिक्षण नष्ट होते हुए तुमारे आयुष्यको देखो ॥१॥ तब क्या करना चाहिये सो बताते हैं:
लडउ माणुसजम्मु म हारहु अप्पा भव-समुद्दि गउ तारहु । अप्पु म अप्पहु रायह रोसह
करहु निहाणु म सव्वह दोसह ॥२॥ अर्थ-पाये हुए मनुष्य जन्मको निरर्थक मत हारो। भव-समुद्र में पड़ी हुई अपनी आत्माको पार लगा दो। राग और द्वषके आधीन अपनी आत्माको मत बनाओ। सब दोषोंका खजाना भी मत बनाओ ॥२॥
दुलहउ मणुयजम्मु जो पत्तउ सहलउ करहु तुम्हि सुनिरुत्तउ । सुह गुरू-दसण विणु सो सहलउ होइ न कीवइ वहलउ वहलउ ॥३॥
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