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उपदेश रसायन
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जाता है । अगर गृहपति ठीक हो तो उनको भी निभाता है और जीवन क्लेशमय नहीं होने देता है ||७||
तसु सरुवु मुणि अणुवत्तिज्जन्
कु विदाणिण कु वि वयणिण लिज्जइ ।
कुवि भएण करि पाणु धरिज्जइ
सगुणु जिहु सो पइ ठाविज्जइ ॥ ७६ ॥
अर्थ --गृही जिवनको सुखमय रखनेके लिये यह जरूरी है कि उन कुटुम्बियों के स्वरूपको भली-भाँती जानकर उनके साथ अनुवर्त्तन- व्यवहार करना चाहिये। किसीको कुछ देकर, किसीको कुछ वचन सुनाकर, किसीको कुछ भय दिखाकर, किसीको मर्यादित बलात्कार से भी शांत बनाना चाहिये । कुटुम्ब में जो अधिक गुणवान हों विवेकी हों उनको ज्येष्ठ पद पर यानि हरेक काम में लेने देने योग्य स्थापित करदेनां चाहिये | ||७६ ||
पत्तिज्जइ
जुह धिट्ठह न य
जो असत्तु तसुवरि दइ किज्जइ । लक्खाविज्जइ
अप्पा परह न
नप्पा विणु कारणि खाविज्जइ ॥७७॥
अर्थ - मूंठ बोलनेवाले और धीटे व्यक्तियोंका विश्वास नहीं करना चाहिये । जो असमर्थ हैं उनपर दया करनी चाहिये । शोकके कारणोंके उपस्थित हो जानेपर चेहरे पर वे भाव आने देने न चाहिये । बिना कारण बिना विशेष लाभके राजकर्मचारियोंसे संबन्ध नहीं रखना चाहिये। क्योंकि ऐसे सम्बन्धो के साथ काफी प्रपंच बढ़ जाते हैं ॥७७॥ माय-पियर ज धम्मि विभिन्ना ति वि अणुवित्तिय हुति ति धन्ना । जे किर हुति दीहसंसारिय ते बल्लंत न ठंति निवारिय ||७८ ||
अर्थ - जो माता पिता अन्य धर्मको मानते हैं, यदि वे विधि मार्ग के अभिमुख ही जांय तो धन्य हैं । यदि कदाचित् दीर्घ संसारी भावके कारण विधिमार्गसे विपरीत बातें बोलते हुए रोकने पर भी नहीं रुकते हैं तो उनपर क्रोध नहीं लाना चाहिये || ७ ||
ताहि विकीरइ
इह
भोयण - वत्थ-पयाण
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अणुवत्तण पयत्तिण |
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