Book Title: Charcharyadi Granth Sangrah
Author(s): Jinduttsuri, Jinharisagarsuri
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 78
________________ x x संदेह-दोलावली अर्थ-उस प्रकरणार्थ को कहते हुए यदि दूसरा कोई भी सम्यक्त्वी या मिथ्यात्वी मनुष्य प्रकरण संबंधी या ओर भी कुछ पूछता है उस बातको प्रकरण व्याख्याता श्रावक यदि जानता है, तो वह कह सकता है। अगर नहीं जानता है, तो न कहे, साथ ही यह बात कहे-। मूल-एयं खलु गीयत्थे, गुरुणो पुच्छिय तओ कहिस्सामि । इय जुत्तीए सड्डो, भवभीरू कहइ सड्डाणं ॥३७॥ अर्थ-श्री गीतार्थ गुरुओंको पूछकर बाद में इस तुम्हारे प्रश्न का जवाब दूंगा। इस युक्ति से भवभीरु श्रावक दूसरे श्रावकों को कहे। अर्थात् मन घडंत जबाव न देकर सद्गुरु का आश्रय ले। __ पौषध प्रश्नः-सभी दिनों में पौषध ग्रहण करना चाहिये या प्रति नियत दिनों में ही ? क्योंकि कई लोग कहते हैं--कि-सामग्री के सद्भाव में सदा ही श्रावक को पौषध लेना चाहिये। प्रति नियतदिन के भरोसे प्राप्त समय सामग्री को निष्फल नहीं जाने देना नहीं चाहिये । ज्ञाता सूत्र में नन्दमणिकार सेठ ने तीन दिन का पौषध किया था । यह नहीं हो सकता कि वे तीनों दिन प्रति नियत पर्वहिन ही थे । __ इसीके प्रतिवाद में दूसरे लोग कहते हैं--कि हमेशा पौषध नहीं लेना चाहिये । विशिष्ट काल में आचरणीय होने से पौषध ग्यारहवां व्रत एवं चौथी प्रतिमा होने से विशिष्ट काल में हो अनुष्ठान के योग्य है। क्यों कि पूर्वाचार्यों ने व्रत को पर्वानुष्ठान रूपसे बताया है। उतराध्यन सूत्रके नवमाध्यन की वृत्तिमें--पौषधो अष्टम्यादि सुब्रत विशेषः-आवश्यक चूर्णिमें सभी काल पर्वो में तपोयोग बताया है एवं अष्टमी पूर्णिमा आदि में नियम से पौबध लेना चाहिये ऐसा बताया है। होइ चउत्थी चउद्दसी अठ्ठमी माईसु दिवसेसु पोसहं । जो जो सदनुष्ठान होता है वह सदा आचरणीय हो होता है ऐसा नियम नहीं है, क्यों पाक्षिक आदि प्रतिक्रमणादि सदनुष्ठान सदा नहीं किये जाते । ज्ञाता सूत्रमें नन्दमणिकार सेठने तीन दीन पौबध लिया हो ऐसे सूत्राक्षर नहीं है। अठ्ठमभत्त के तीन दिनों में जो अंतका पूर्णिमा का दिन था उसमें पौषध लिया था ! वह पर्व दिन ही होता है। तीन दिनकी प्रतिमा में तीसरे दिन कार्योत्सर्ग होता है। वैसे इस प्रकार दो मतों के रहते जिज्ञासु प्रश्न करता है कि पौषध कव करना चाहिये ? इसके जवाब में कहते हैंमूल-उठमि चउद्दसि पंचदसमी उ पोसहदिणंति । एयासु पोसहवयं संपुन्नं कुणइ जं सड्ढो ॥३८॥ अर्थ-- उद्दिष्टा-अष्टमी अमावस्या पूर्णिमा ये पौषध ग्रहण करने के दिन हैं इन तिथियों में श्रावक सम्पूर्ण-चारों प्रकार के पौषधों को करता है। दशाश्रुत स्कंध चूणि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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