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( ख ) (४) रत्नपरिक्षा सं० १३७२ गा० १३२। इस में सर्व प्रकार के रत्न एवं मोती इत्यादि का वर्णन है जो कि उस समय बादशाह के खजाने में विद्यमान थे।।
(५) द्रव्यपरिक्षा, सं० १३७५ गाथा १४६ । इस ग्रन्थ में प्राचीन और तत्कालीन राजा व बादशाहों की मुद्राओं का वर्णन है। जो कि अल्लाउद्दीन बादशाह के टंकशाल में विद्यमान थी। जिस को आदि गाथा
"कमलासण कमलकरा छणससिवयणा सुकमलदलनयणा संजुत्तनवनिहाणा नमि वि महालच्छि रिद्धिकरा" ॥१॥ (६) धातोत्पत्ति, गाथा ५७ । इस में सातों प्रकार के धातुओं का वर्णत है।
(७) गणितसार, गाथा ३११। इस में मुख्य गणित का विषय इसके अतिरिक्त कृषि, शिल्प-विज्ञान, आदि अन्य विषयों का भी संग्रह किया गया है। उपरोक्त संपूर्ण ग्रंथों का विशेष परिचय हमारे लघुभ्राता मुनि कांतिसागरजी द्वारा लिखित "ठक्कुर फेरू और उनके ग्रन्थ" नामक निबन्धों में देखें-"विशाल भारत” अंक मई और जून १८४७ ।
इन ग्रंथों के अवलोकन से जान पड़ता है कि ग्रन्थकार फेरु प्राकृत एवं अपभ्रंस भाषा के महान् अनुभवी विद्वान थे।
सं० १३७५में ठ० अचलने कुतुबदीनके समय जैन तीर्थोकी जात्रानिमित्त विशाल संघ निकाला था, वैसा हो एक और सं० १३८० में ग्यासुदीन तुगलक के समय रयपति ने भी संघ निकाला था इन उभय संघों में ठक्कुर फेरु और श्रीजिनचंद्रसूरि तथा दादा-जिनकुशलसूरि क्रमशः सम्मिलित थे । (खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली पृ० ७२) इस प्रकार खरतरगच्छ के युग प्रधानाचार्यो के समय में ग्रन्थकार ठक्कुर फेरु विद्यमान थे। प्रस्तुत ग्रन्थ का संशोधन और भाषा अनुवाद श्रीबुद्धिमुनिजी ने कराहे ।
मुनि मंगलसागर
कलकत्ता
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