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संदेह-दोलावली प्रश्न-निविगय में क्या विधि है ? बताते हैं। मूल---तं होइ निविगइयं, जं किर उक्कोसदव्वचाएण ।
कीरइ जं उक्कोसं, तं दव्वं पुण निसामेह ॥९५॥ खीरी-खंडं-खज्जूर-सकर-दक्ख-दाडिमाई य । तिलवट्टी वडयाइं करंबओ चूरिमं च तहा ॥९६॥ नालियरं मोइयमंडिया, संतलिय भजियाचणए ।
आसुरि अंबिलिया पाणगाइ, किल्लाडियाइ तहा ॥९७॥ तंदुलकढिअं दुद्धं घोलं एयाइं भूरि भेयाणि ।
उक्कोसगदव्वाइं वजिज्जा निव्विगइयम्मि ॥९८॥ अर्थ-विकार-वर्द्धक उत्कट-द्रव्यों के त्याग से एक बार भोजन करने को आप्त पुरुष निविगय फरमाते हैं। उत्कट-द्रव्य जो हैं वे इस प्रकार हैं। खीर, खाँड, खजूर, सक्कर, द्राक्षा दाडिभ आदि फल,तिल पापडी, बड़े, करबा, चूरमा, नारियलगिरि, मोदिक, मन्डिका पूरणपोली, भूजे हुए तले हुए चने, राइता इमली का पानी, फटे हुए दूध घ्रारिका आदि, थोड़े चावल डाल कर कढा हुआ दूध, दहिका घोलिया, ऐसे अनेक प्रकार के उत्कट द्रव्यों को निविगय में नहीं खना चाहिये।
उत्कट-द्रव्य का क्या लक्षण है ? मूल-विराई दव्वेण हया, जायं उक्कोसियं भवे दव्वं ।
केइतयं विगइगयं, भणंति तं सुयमयं नत्थि ॥९९॥ अर्थ-दूध, दही, घी, तैल, गुड, तली हुई चीजें, ये छह विषय दूसरे द्रव्य से उपहत होने पर उत्कट द्रव्य हो जाता है । कई लोग उत्कट द्रव्य को विगय कहते हैं जो श्रुत समत नहीं है।
प्रश्न-उपर बताये उत्कट द्रव्यों का त्याग आलोचना संबंधि निविगय में होता है या हर एक निविगय में करना चाहिये ।। मूल-कल्लाण तिहीसु पुणो, जं कीरइ निव्विगय मिह ।
तत्थ खंडादि दव्वमुक्कोसियं, तु उस्सग्गओ वज्जे १००
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