Book Title: Charcharyadi Granth Sangrah
Author(s): Jinduttsuri, Jinharisagarsuri
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 92
________________ संदेह-दोलावली मल-पडिक्कमेणे चेइयहरे भोयणममयम्मि तह य संवरणे । ___ पडिक्कमणसुयणपडिबाहकालियं सत्तहा जहणो ॥८६॥ अर्थ-अहो रात्रि में १-प्राभातिक प्रतिक्रमण के अन्त में २-श्रीजिनमन्दिर में ३-प्रत्याख्यान पारने से पहिले ४-भोजन के बाद प्रत्याख्यान करने के पहिले ५ - दैवसिक प्रतिक्रमण के प्रारंभ में ६-रात्रि संथारा पौरुषी पढ़ने से पहिले सोते समय ७सोकर के जागने पर ऐसे सात बार साधुओं को चैत्य वन्दन करने होते हैं। ___ प्रश्न- ग्रहस्थोंको सात-पांच-तीन बार चैत्य वन्दन कैसे होते हैं ? मूल-पडिक्कमिओ गिहिणो वि हु सत्तविह पंचहा उ इयरस्स । होइ जहन्नेण पुणो तीसुवि संझासु इय तिविहं ॥८७॥ ___ अर्थ-उभयकाल आवश्यक-प्रतिक्रमण करते हुए गृहस्थ को भी उत्कृष्ट रूपसे सातबार प्रतिकमण न करते हुए, मध्यम रूपसे पांचवार, और जघन्य रूपसे तीन संध्याओं में तीन बार चैत्य वन्दन करना चाहिये ।। मूल-सुसाहूजिणाणां पूयणं च साहम्मियाणं चिंतं च । ___अपुव्य पढण-सवणं तदत्थ परिभावणं कुज्जा ॥८८।। अर्थ-आलोचना करनेवाला सुसाधुओं को प्रतिलाभे। जिनेश्वरों की पूजा करे। साधर्मिकों का खयाल रखे । पहिले नहीं पढ़ा ऐसा नया पाठ पढ़े, सुने, और उसके अर्थों का चिन्तन मनन निधि ध्यासन करे । मल--रुद्दट्ट झाणदुर्ग, वजित्ता तह करिज्ज सज्झायं । आयारे पंचविहे सया वि अब्भुज्जमं कुज्जा ॥८९॥ अर्थ-आलोचना करनेवाला विषय वासना-जन्य आर्तध्यान, और हिंसा भावना जन्य रौद्रध्यान, इन दोनों दुानों का त्याग करे। हमेशा स्वाध्याय करे और ज्ञान-दर्शन चारित्र-तप और वीर्यरूप पांच आचारों के पालन में अति उत्साह दिखावें । दुष्कर क्रियामात्र को करनेवाला यदि उत्सूत्र भाषी हो तो उसको कुसंग से बचना चाहिये । यह बताते हैंमूल-उस्मुत्तभासगा जे ते दुक्कर कारगा वि सच्छंदा । ताणं न दंसणं पिहु, कप्पाइ कप्पे जओ भणियं ॥ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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