Book Title: Charcharyadi Granth Sangrah
Author(s): Jinduttsuri, Jinharisagarsuri
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 60
________________ कालस्वरूपकुलकम् इय जिणदत्तवएसु जि निसुणहि पढहि गुणहि परियाणवि जि कुणहि । ते निव्वाण-रमणी सह विलसहि वलिउ न संसारिण सह मिलिसिहि ॥३२॥ अर्थ ---इस प्रकार जिनदत्त -अरिहंतो के दिये हुए उपदेश को जो सुनते हैं पढते हैं गुणते हैं जानकर आचरण करते हैं वे निर्वाण - सुंदरीके साथ विलास करते हैं अजरामर को पाये बाद लोट कर संसार के दुःखों के साथ नहीं मिलंगं । इस लोकमें प्रकारान्तर से कर्त्ताने अपना नाम ( जिनदत्त सूरि ) यह सूचित किया है ॥३२॥ * इति कालस्वरूपकुलकम् समाप्तम् 8 ॐ+ + + K a +k+ + -- - ॐ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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