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कालस्वरूप कुलकम्
गेहु
तं
जं दढबंधु जडि भिज्जत सेसउ गलिउ ||२६||
वलियउ
अर्थ - जिस घर में भाई लोग जूदे २ दोखते हैं वह घर कुल परंपरा से अव्यच्छिन्न रूप से बहता हुआ नहीं दोखतो बल्कि गिरा हुआ दीखता है । जिस घर में दृढ़ स्नेह वाले बंधु-भाई लोग रहते हैं वह घर बलवान्-टिकाउ माना जाता है। अगर किसी जड़-मूर्ख व्यक्ति द्वारा भिन्न हो जाय तो बाकीका सारा घर गल - छिन्न भिन्न हो जाता है। दूसरे पक्ष में- जिस घर में बन्ध टूटे से दीखते हैं वह घर गिर जाता है । जिस में दृढ़ बन्धन
होते हैं वह टिकाऊ होता है । जड-जल से भेद होने पर गल जाता है ||२६||
कज्जउ करइ बुहारी बडी सोहइ गेहु जइ पुण सा वि
ता किं कज्ज तीए साहिज्जइ ||२७||
करेइ
समिद्धी ।
जुयं जुय किज्जइ
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अर्थ - बंधी हुई बुहारी कचरे को इकट्ठा कर देती है । घरको साफ-शुद्ध और समृद्ध बना देती है । यदि वह जुदी जुदी की जाय तो उस से क्या काम सिद्ध हो सकता है ! कुछ भी नहीं । यही हालत कुटुम्ब की है। संगठित होने पर सभी काम सिद्ध होते हैं और जुदा२ हो जाने पर सारी कमजोरियां आ जाती है ||२७||
५१
चित्तह
पुणवसु हत्थि चडइ सो सोमु सूरु पुत्तु वि जो किर चित्तह मञ्जिन पविसइ
मावित्तह |
जेह मूलि सु कहि किव होसइ ॥२८॥
अर्थ- जो सौम्य - प्रशान्त और शूर-तेजस्वी प्रकृति वाला पुत्र अपने विनय गुण से माता पिता आदि सभी के चित्तों में स्थान पा लेता है उसके हाथ में संपत्ति आती है । जो अपने गुणों से लोगों के चित्त में प्रवेश नहीं करता वह ज्येष्ठ मूल-बड़े पद का अधिकारी कहो कैसे हो सकता है ! । दूसरा अर्थ भी निकलता है पुर्नवसु, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्र हैं ।
सोम-चन्द्र-सूर - रवि, सोमपुत्र- बुध और रवि पुत्र शनि, ये ग्रह हैं । नक्षत्रों के साथ ग्रहों का सम्बन्ध क्रम से होता है अक्रम से नहीं । इसी प्रकार पुरुष भी उत्तरोत्तर संपत्ति को पाते हुए ज्येष्ठमूल-बड़े आदमी बन जाते हैं। एकदम नहीं ||२८||
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