________________
५६
चैत्यवन्दन-कुलकम् अर्थ-सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद श्रावक को जीवन पर्यंत कम से कम चौवीस नवकार मंत्र जपने ही चाहिये । उद्दिष्ट-अमावस्या अष्टमी चतुर्दशी में और पूर्णिमा द्वितीया एकादशी पंचमी की पर्व तिथियों में बियासना आदि करना चाहिये ॥१॥ मूल-पंचुबरिचउविगई, हिम-विस-करगे य सव्वमट्टी य ।
राइभोयणगं चिय, वहुबीयअणंतसंधान ॥१६॥ घोलबडा वाइंगण, अमुणियनामाणि पुप्फफलियाई ।
तुच्छफणं चलियरसं, वजह वजाण बावीसं ॥१७॥ अर्थ-उदूंबर-उंबरा के बड़ के प्लक्ष के मूलर के और पीपल के फल, ये पांच उदुम्बर संज्ञा से प्रसिद्ध हैं । इनको ४ चार महाविगइ-मद्य-मांस-शहद और मक्खन इनको ह वरफ को १० अफीम-संखिया आदि विष को ११ वर्षाद में पड़ने वाले गडों को १२ सब प्रकार की मिट्टी को १३ रात्रीभोजन को १४ जिसमें बीज बहुत हैं असात्विक बहु बीज फलों को १५ जो जमीन के अंदर पैता होते हैं जो काट कर बोने पर ऊग जाते हैंऐसे अनंत कायिक कांदे आलू आदि फलों को १६ संधाना-अथाणों को १७ गरम न किये हुए दही मठ्ठ आदि में डाले हुए बड़े-घोलवडों को १८ बैंगन को १६ जिन फलों को
आप भी न जानता हो न दूसरा ही कोई जानता हो-ऐसे अज्ञात पुष्प फलों को २० पीलू-पीचू आदि तुच्छ फलों को २१ जिसका रस चलायमान हो गया है-ऐसी चलितरस वस्तु को २२ इन बावीस छोड़ने योग्य अभक्ष्य वस्तुओं का हे भव्यात्मा मुमुक्षुओं ? अपने हित के लिये छोड़ दो ॥१६-१७॥
१–भयवं बीय पमुहासु पंचसु तिहिसु अणुदाणं कयं किं फलं होइ ? गोयमा बहुफलं भवइ जेओ णं जीवे पाएणं एयासु तिहिसु परभवाउयं बंधा। तम्हा समणेण वा समणोए वा सावएण सावियाए वा विसेसओ धम्माणुठ्ठाणं कायव्वं ।
महानिशीथ सूत्रे२.-अनंतकाय बत्तीस प्रकार के होते हैं उनके नाम
सव्वायकंदजाई, सूरणकंदो य वज्जकंदो य। अहहलिद्दा य तहा, अइं तह अल्लकच्चूरो ॥१॥ सत्तावरी विराली, कुमारी तह थोहरी गिलोइ य । ल्हसणंवंस करिल्ला, गज्जर तह लोणओ लोढा ॥२॥ गिरिकन्नकिसलपत्ता, कसेरूगा थिग्गअल्लमुत्थाय । तह लूणरुक्छल्खली, खिल्लुडो अमय वल्ली य ॥३॥ मूला तह भूमिरसा, विरहा तह ढकवत्थुलो पढमो । सूयरवल्लो य तहा, पल्लंको कोमलं-बिलिया ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org