Book Title: Charcharyadi Granth Sangrah
Author(s): Jinduttsuri, Jinharisagarsuri
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ उपदेश रसायन तह बुल्लंतह नवि रूसिज्जइ तेहि समाणु विवाउ न किज्जइ ॥७९॥ अर्थ-उन भिन्न धर्मवाले भी माता पिताको अनुवर्तना-भोजनवस्त्र आदिसे करनी चाहिये, क्योकि उनका उपकार दुष्प्रतिकरणीय है। कदाचित् वे बुरी वात भी कहदें तो भी रोष नहीं करना चाहिये, और न विवाद हो करना चाहिये ।।६।। उपदेशके उपसंहार में उपदेश फल बताते हैं .... इय जिणदत्तुवएयसरसायणु इह-परलोयह सुक्खह भायणु । कण्णंजलिहिं पियंति जि भव्वइं ते हवंति अजरामर सम्बई ॥८॥ अर्थ---इस प्रकार जिनदत्त---श्रीतीर्थंकर देवों द्वारा दिये हुए उपदेश रूप रसायनको-जो कि इसलोक परलोकमें सुखका भाजन सुखको देनेवाला है। उसको जो भब्यात्मा कर्णाजलिसे पीते हैं वे सभी अजर और अमर पदके अधिकारी हो जाते हैं ।।८।। ७७७० ॐ इति उपदेश रसायन समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116