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श्री जिन दत्त सूरि विरचितम्
॥ कालस्वरूप कुलकम् ॥
पणमवि
वमाणु जिणवल्लहु जिणवल्लहु ।
परमप्पयलच्छिहि
सुगुरुवसु देमि हउ भव्वह
सुक्खह कारण होइ जु सव्वह || १ ||
अ- अवधि जिनादिकोंके वल्लभ, परमपद-मोक्ष लक्ष्मीके
विजयी स्वामी श्री
जिनवल्लभ वर्द्धमान भगवान महावीर देवको प्रणाम करके, महोपकारी परम गुरु श्री जिनवल्लभ सूरीश्वरजी महाराजको प्रणाम करके सद्गुरु महाराजका बताया हुआ उपदेश भव्यात्माओं को देता हूं। जो सबके सुखका कारण होता है । मीण सणिच्छरंमि
संकंतइ
मेसि जंति
करंतइ |
दे भग्ग
पुण वक्कु
परचक
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वड वड पट्टण ते
भट्टा ॥२॥
अर्थ- मीन राशिमें शनिश्चर के संक्रान्त होनेपर और फिर मेष राशिमें जाते हुए वक्रता करने पर बड़े २ देश नष्ट हो गये । पर चक्रोंका उपद्रव वढ गया । बड़े २ शहर जो थे वे भी नष्ट हो गये ||२||
विक्कम संवच्छरि
पइट्ठा
सय
बारह हुयइ पणडुउ सुहु घर बारह | इह (2) संसारि सहाविण संतिहि वत्तहि सुम्मइ सुक्खु वसंतहि ॥ ३ ॥
अर्थ विक्रम संवत वारहसो के करीब ऐसा काल आया कि घरके दरबाजोंसे सुख मानों भाग ही गया । इस प्रकारके संसारी स्वरूपके होनेसे सज्जन पुरुषोंकी बातोंसे ह सुख संसारियों को सुनने को मिलता है ॥३॥
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