Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 9
________________ त्रिपिटक का अध्ययन करने से पता चलता है कि अन्य धार्मिक ग्रन्थो की तरह 'बुद्ध-वचन' मे कुछ विशिष्ट प्रश्नो का उत्तर विद्यमान है। ठीक उन्ही और वैसे ही प्रश्नो का उत्तर नही, जैसे प्रश्नो का उत्तर अन्य ग्रन्थो मे देने का प्रयत्न किया गया है। क्योकि कुछ प्रश्नो के बारे मे बुद्ध कहते है-"भिक्षुओ, यदि कोई कहे कि मे तब तक भगवान् (बुद्ध) के उपदेश के अनुसार नही चलूंगा, जब तक कि भगवान् मुझे यह न बता दे कि ससार शाश्वत है, वा अशाश्वत, ससार सान्त है वा अनन्त, जीव वही है जो गरीर है वा जीव दूसरा है शरीर दूसरा है, मृत्यु के बाद तथागत रहते है, वा मृत्यु के बाद तथागत नही रहते तो भिक्षुओ, यह बाते तो तथागत के द्वारा वे-कही ही रहेगी और वह मनुष्य यूँ ही मर जायगा।" (पृ २२)। ____ इन बे-कही-अव्याकृत वातो के सम्बन्ध मे हमे ध्यान रखना है कि (१) बुद्ध ने कुछ बातो को अव्याकृत रक्खा है और (२) बुद्ध ने कुछ ही वातो को अव्याकृत रक्खा है। इस लिए एक तो हम जिन बातो को बुद्ध ने बेकही (=अव्याकृत) रक्खा है, उनके बारे मे बुद्ध का मत जानने के लिए व्यर्थ हैरान न हो, दूसरे अपनी अपनी पसन्द की कुछ बातो, अपने पसन्द के कुछ मतो-जैसे ईश्वर और आत्मा आदि--को 'अव्याकृतो' की गिनती मे रख कर, अव्याकृतो की सख्या न बढाये। ससार को किसने बनाया? कब बनाया? आदि प्रश्नो को बुद्ध ने नजर-अन्दाज किया, उनका उत्तर नही दिया-सो अकारण ही नही। उनका कहना था-"भिक्षुओ, जैसे किसी आदमी को जहर मे बुझा हुआ तीर लगा हो, उसके मित्र, रिश्तेदार उसे तीर निकालने वाले वैद्य के पास ले जावे। लेकिन वह कहे-'मै तब तक यह तीर नही निकलवाऊँगा, जव । तक यह न जान लूं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा है, वह क्षत्रिय है, । ब्राह्मण है, वैश्य है, वा शूद्र है,' अथवा वह कहे-'मै तब तक यह तीर नही निकलवाऊँगा, जब तक यह न जान लूं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा

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