Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ दी २२ ४२ १० – आश्रवो के क्षय मे जो चित्त की आयव-रहित विमुक्ति है, प्रज्ञा की विमुक्ति है, उसे इसी जन्म में स्वय जान कर, माक्षात कर, प्राप्त कर विहार करता है । 1 भिक्षुओ, भिक्षु वेदनाओ मे वेदनानुपश्यी कैसे होता है ? भिक्षुओ, भिक्षु - वेदना को अनुभव करते हुए जानना है कि मुसवेदना अनुभव कर रहा हूँ । दुस-वेदना को जनुभव करते हुए जानता है कि दुस- वेदना अनुभव कर रहा हूँ। जदुम-जमुन वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि जदुन अमुल वेदना को अनुभव कर रहा हूँ । भोग-पदार्थ युक्त ( = सामिप ) मुन-वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोगपदार्थ युक्त सुग्न - वेदना को अनुभव कर रहा हूँ । भोग-पदार्थ-रहित सुन वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोग-पदार्थ-रहित सुम-वेदना को अनुभव कर रहा हूँ । भोग-पदार्थ सहित दुस- वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोग-पदार्थ- सहित दुस- वेदना को अनुभव कर रहा हूँ । भोग- पदार्थ रहित दुस- वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोगपदार्थ रहित दुस-वेदना को अनुभव करता हूँ । भोग-पदार्थ-युक्त अदुखअमुस वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोग-पदार्थ युक्त अदुखअसुस वेदना को अनुभव करता हूँ । भोग- पदार्थ रहित अदुस अमुस वेदना को अनुभव करते हुए जानता है कि भोग-पदार्थ-रहित अमुस - अदुख वेदना को अनुभव करता हूँ । इस प्रकार अपने जन्दर की वेदनाओ मे वेदनानुपश्यी हो विहरता है। वाहर की वेदनाओ मे वेदनानुपश्यी हो विहरता है । भीतर-बाहर की वेदनाओ में वेदनानुपश्यी हो विहरता है। वेदनाओ मे उत्पत्ति (धर्म) को देखता है। वेदनाओ मे वय ( - धर्म) को देखता है । वेदनाओ मे समुदय-वय (- धर्म) को देखता है । 'वेदना है' करके इसकी स्मृति ज्ञान और प्रतिस्मृति की प्राप्ति के लिए उपस्थित रहती हैं । वह अनाश्रित हो विहरता है । लोक मे किसी भी वस्तु को (मै, मेरा करके) ग्रहण नही करता ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93