Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 69
________________ म. ४४ म २७ ( १२ ) सम्यक् समाधि भिक्षुओ, यह जो चित्त की एकाग्रता है - यही समाधि है । चारो स्मृतिउपस्थान है समाधि के निमित्त, और चारो सम्यक् - प्रयत्न है समाधि की सामग्री । इन्ही (आठो) धर्मो के सेवन करने, भावना करने तथा बढाने का नाम हे समाधि भावना | भिक्षुओ, भिक्षु इस आर्य - सदाचार से युक्त हो, इस आर्य - इन्द्रिय-सयम से युक्त हो, स्मृति ओर ज्ञान से भी युक्त हो, ऐसे एकान्त स्थान मे रहता है जैसे आरण्य, वृक्ष की छाया, पर्वत, कदरा, गुफा, श्मशान, जगल, खुले आकाश तथा पुवाल के ढेर पर । वह पिड-पात से लौट भोजन कर चुकने पर पालथी मार शरीर को सीवा रख स्मृति को सामने कर बैठता है । वह सासारिक लोभो को छोड लोभ-रहित चित्त वाला हो विचरता है । चित्त से लोभ को दूर करता है । वह क्रोध को छोड क्रोध-रहित चित्तवाला हो, सभी प्राणियो पर दया करता हुआ विचरता है । चित्त से क्रोध को दूर करता है । वह आलस्य को छोड आलस्य से रहित हो, रोशन- दिमाग (= आलोकसञ्जी), स्मृति तथा ज्ञान से युक्त विचरता है । वह चित्त से आलस्य को दूर करता है । वह उद्धतपने तथा पछतावे को छोड उद्धततारहित शात चित्त हो विचरता है । चित्त से उद्धतता को दूर करता है । वह सशय को छोड सराय-रहित हो विचरता है । वह अच्छी अच्छी बातो ( = कुशल धर्मो ) के विपय मे सदेह - रहित होता है । चित्त से सन्देह को दूर करता है । वह चित्त के उपक्लेश, प्रज्ञा को दुर्बल करने वाले पॉच बन्धनो को छोड,

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