Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 74
________________ - ५३ - और भिक्षुओ, भविष्यत् मे जितने भी अहंत सम्यक् सम्बुद्ध होगे-वे भी भिक्षु-सघ को इसी आदर्श की ओर लगायेगे, जिसकी ओर इस समय मै ने अच्छी तरह लगाया है। शिष्यो के हितैपी गास्ता को अपने गिप्यो पर दया करके जो करना अ. ७ चाहिये, वह मै ने कर दिया। भिक्षुओ, यह (सामने) वृक्षो की छाया है। वह एकान्त-घर है। भिक्षुओ, ध्यान लगाओ, प्रमाद मत करो। देखना, पीछे मत पछताना। यही हमारी अनुशामना है।

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