Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 77
________________ जल धातु-जल नही जलत्व, जिसमे जोडने की शक्ति है (Cohesion) । अग्नि धातु-आग नही अग्नित्व, या अग्निपन (Radiation)। वायु-धातु-वायु नही वायुपन (Vibiation)। पृ० ६. उनका सयोग-किसी भी वस्तु के ज्ञान के लिए वह वस्तु चाहिये, उस वस्तु का ज्ञान प्राप्त करने वाली इन्द्रिय चाहिये और चित्त चाहिये। इनमे से किसी एक के भी न रहने से ज्ञान नहीं हो सकता। चित्र के ज्ञान के लिए चित्र होना ही चाहिये, आँख होनी ही चाहिये, लेकिन उनके साथ चित्त भी होना चाहिये। पृ० ७. बिना हेतु के विज्ञान-प्रतीत्य-समुत्पाद वुद्ध-धर्म का विशिष्ट सिद्वान्त है, जिसके अनुसार सभी उपादान-स्कन्ध सहेतुक है। विज्ञान की उत्पत्ति भी सहेतुक है। विज्ञान-विज्ञान' शब्द यहाँ दो अर्थो मे है साधारण-अर्थ मे सारी चित्त-क्रिया के लिए ओर विशेप अर्थ मे, वेदना, सजा, सस्कार आदि से रहित चित्त-क्रिया के लिए। सस्कार-यहाँ सस्कार शब्द से कायिक-सस्कार और मनो-सस्कार, दोनो ग्राह्य है। पृ० ११. काम-तृष्णा-इन्द्रिय-जनित सुख की तृष्णा। भव-तृष्णा-व्यक्तिगत जीवन स्थायी रूप से बना रहे देखने की तृष्णा। जिस आदमी को "आत्मा" के अस्तित्व मे, उसके नित्यत्व मे विश्वास होता है, वही इस प्रकार की तृष्णा का शिकार होता है। विभव-तृष्णा-इसी जन्म में अधिक से अधिक 'मजा' लेने की तृष्णा। जिस आदमी का यह मिथ्या-मत हो कि जन्म से लेकर मरने तक ही मेरा अस्तित्व है, और जन्म से पूर्व तथा मृत्यु के पश्चात् मेरे जीवन का किसी भी अस्तित्व से किसी प्रकार का सम्बन्ध नही, वही इस विभव-तृष्णा का शिकार होता है। विभव-तृष्णा के वशीभूत हो जाने पर या तो वह एक दम निराशावाद के गढे मे

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