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में था । वर्तमान का व्यक्तित्व वर्तमान मे है, न भविष्य में होगा, न अतीत में था । अतीत का व्यक्तित्व अतीत में था, न वर्तमान मे है, न भविष्य में होगा ।"
(विशुद्विमार्ग )
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पृ० २६ प्रतीत्य-समुत्पाद - प्रत्ययों में उत्पति का नियम । वौद्ध धर्म कमी "एक कारण' से सृष्टि की उत्पत्ति नहीं मानता। प्रत्येक "एक कारण" के भीतर उमे "कारण सामग्री" दिलाई देनी है।
फँसते नही - यथायं दृष्टि मे व्यक्ति क्या है ? गारी - रिक और मानसिक अवस्थाओं का एक मसरण - मान । व्यक्ति=== या बुद्ध भी कही है ही नही
पृ० ३२ नैष्क्रम्य सकल्प —— काम भोग के जीवन को त्याग, काम-भोग वामना से रहित जीवन व्यतीत करने का सकल्प ।
पृ० ३० तथागत
अव्यापाद सकल्प -- ऐसा मकल्प जिसमे क्रोध का लेग न हो ।
अहिंसा सकल्प --- ऐमा सकल्प जिसमे निर्दयता का लेश न हो ।
पृ० ३६ बोधि के सात भग - बुद्धत्व प्राप्ति के यह सात अग न केवल आर्यव्यक्तियो ( = श्रोतापन्न, सकृदागामी आदि ) में ही पाये जाते हैं, वल्कि किसी हद तक साधारण पृथग्जनो में भी । देसो पृ० ४६
पृ० ३७ समाधि-निमित्त - योग अभ्यासी भिक्षु के योग अभ्यास के फल-स्वरूप उत्पन्न हुआ आकार - विशेष (object )
पृ० ३८ सम्यक् स्मृति - शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओं के प्रति निरन्तर वनी रहने वाली जागरुकता ।
पृ० ३८. काया - रूप काया (material existence )
पृ० ३६ काया - श्वास-प्रश्वास का ग्रहण |
काया है - वह समझता है कि यह केवल 'काया है', यह कोई व्यक्ति नही, स्त्री नही, पुरुष नही, आत्मा नही, आत्मा का नही" (अट्ठकथा)