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भिक्षुओ, भिक्षु पांच नोवरणो (= बन्धनो) को देसता हुआ धर्मो मे
धर्मानुपश्यी होता है।
उसमे कामुकता ( = कामच्छन्द) विद्यमान होने पर "कामुकता है" जानता है । उसमे कामुकना नही होने पर "कामुकता नही है" जानता है । कामुकता की उत्पत्ति कैसे होती है - यह जानना है । उत्पन्न कामुकता का कैसे नाश होता है - यह जानता है । नष्ट हुई कामुकता फिर कैसे नहीं उत्पन्न होती है - यह जानता है ।
उसमे क्रोध (=== व्यापाद) विद्यमान होने पर "क्रोध है" जानता है । hta नही होने पर 'क्रोध नहीं है जानना है। कोच की उत्पत्ति कैसे होती है - यह जानता है । उत्पन्न क्रोध का कैसे नाश होता है - यह जानता है । नष्ट हुआ को फिर कैसे नहीं उत्पन्न होता है--यह जानता है ।
उसमें आलस्य (=स्त्यान- मृह) विद्यमान होने पर "आलस्य है" जानता है । उसमें आलम्य नही होने पर "आलम्य नही है" जानता है । आलस्य की उत्पत्ति कैसे होती है - यह जानता है । उत्पन्न आलस्य का कैसे नाग होता है --- यह जानता है । नष्ट हुआ जालस्य कैसे फिर नही उत्पन्न होता है - यह जानता है।
उसके भीतर उद्धतपन-पछतावा ( औद्धत्य - कौकृत्य) विद्यमान रहने पर "उतपन तथा पछतावा है" जानता है । उनके भीतर उद्वतपन तथा पछतावा नही होने पर उद्धतपन तथा पछतावा नही है जानता है । उद्धतपन तथा पछतावे की उत्पत्ति कैसे होती है - यह जानता है । उत्पन्न उद्धतपन तथा पछतावे का कैसे नाश होता है—यह जानता है । नप्ट हुआ उद्धतपन तथा पछतावा फिर कैसे नही उत्पन्न होता है - यह जानता है ।
उसके भीतर समय (= विचिकित्सा) विद्यमान रहने पर "सगय है" जानता है । उसके भीतर सराय नही रहने पर 'समय नही है' जानता है । सशय की उत्पत्ति कैसे होती है—यह जानता है । उत्पन्न सशय कैमे नप्ट