Book Title: Buddh Vachan
Author(s): Mahasthavir Janatilok
Publisher: Devpriya V A

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Page 35
________________ - १४ - १३ है, वह उस वेदना मे आनन्द लेता है, प्रशसा करता है, उसे अपनाता है। वेदना को जो अपना बनाना है, वही उसमे राग उत्पन्न होना है। वेदना मे जो राग है, वही उपादान है। जहाँ उपादान है, वहाँ भव है। जहाँ भव है, वहाँ पैदा होना है। जहाँ पैदा होना है, वहाँ बूढा-होना, मरना, गोक करना, रोना-पीटना, पीटित होना, चिन्तित होना, परेशान होना-सव है। इस प्रकार इस सारे के सारे दुस का समुदय होता है। भिक्षुओ, कामना ही के कारण, कामना ही की वजह से, कामना ही के हेतु से राजा राजाओ से झगडते है, क्षत्रिय क्षत्रियो से झगडते है, ब्राह्मण, ब्राह्मणो से झगडते है, वैश्य (=गृहपति) वैश्यो से झगडते है, माता पुत्र से, पुत्र माता से झगडता है, पिता पुत्र से, पुत्र पिता से झगडता है, भाई भाई से, भाई बहन से, बहन भाई से झगडा करती है, मित्र मित्र से झगडता हैइस प्रकार वे झगडते हुए एक दूसरे से मुक्का-मुक्की होते है, डडो से भी पीटते है, शस्त्रो से भी प्रहार करते है। वे मर जाते हैं वा मरणात दुख पाते है। _ और फिर भिक्षुओ, कामना ही के कारण, कामना ही की वजह से, कामना ही के हेतु से, (चोर) घर मे सेध लगाते है, लटते है, उजाड डालते है, रास्ता रोकते है तथा पर-स्त्री-गमन करते है। ऐसे आदमियो को राजा पकडवाकर तरह तरह के दण्ड दिलवाते है-चाबुक लगवाते है, वेत से तया डडे से पिटवाते है, हाथ कटवा देते है, पैर कटवा देते है, हाथ-पैर दोनो कटवा देते है, कुत्तो से नुचवा डालते है, जीते जी सूली पर चढा देते है तथा तलवार से सिर कटवा डालते है। वे मर जाते है वा मरणात दुख पाते है। और फिर भिक्षुओ, कामना ही के कारण, कामना ही की वजह से, कामना ही के हेतु से (आदमी) गरीर से दुष्कर्म करते है, वाणी से दुष्कर्म करते है, तथा मन से दुष्कर्म करते है। शरीर, वाणी तया मन से दुष्कर्म करके शरीर छूटने पर मरने के अनन्तर दुर्गति को प्राप्त होते है।

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